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रूस और यूक्रेन की लड़ाई

डीजल की कमी के कारण किसानों को क्या दिक्कतें आ रही हैं

डीजल की कमी के कारण किसानों को क्या दिक्कतें आ रही हैं

डीजल की कमी के कारण किसानों को क्या दिक्कतें आ रही हैं और सरकार इस समस्या पर काबू पाने के लिए क्या कर रही है?

जैसा की हम सबको पता है कि अभी बरसात का सीजन शुरू हुआ है. इस समय किसान
खेतो की जोताई और बोआई करते है. जोताई के लिए किसान ट्रैक्टरों का इस्तमाल करते है और ट्रैक्टर चलाने के लिए डीजल लगता है. परंतु अभी के समय भारत के कई सारे प्रदेशों में पेट्रोल और डीजल की कमी हो गई है. कई सारी जगह पर ये हालत है कि सिर्फ एक या दो दिन का स्टॉक ही बचा है. इस तरह की हालातो को देख कर ऐसा लगता है कि पेट्रोल और डीजल के दाम और बढ़ जाएंगे क्योंकि इनकी मांग ज्यादा और सप्लाई कम है. यहां तक कि जो पेट्रोल पंप हाईवे पे पड़ते हैं उनमें भी 60% पेट्रोल पंप में डीजल खतम हो गया है. पेट्रोल पंप में तेल की कमी पे पेट्रोल पंप एसोसिएशन का कहना है कि केंद्र सरकार के पेट्रोल और डीजल पर एक्साइज ड्यूटी घटाने के बाद तेल कंपनियों में सप्लाई कम कर दी है. यदि ऐसा ही चलता रहा तो आगे आने वाले दिनों में हालात बद से बदत्तर हो जाएंगे. हो सकता है कि किसान धरने पर उतर आए. सप्लाई न होने के कारण शहर के पेट्रोल पंप 2 से 3 घंटे तक बंद रहे.

सूत्रों के हिसाब से सरकार डीजल के एक्सपोर्ट पर बैन लगा सकती है

प्राइवेट डीजल कंपनियां ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए डीजल को बाहर एक्सपोर्ट कर रही है और अपने ही देश में डीजल की सप्लाई को 50 फीसदी तक कम कर दिया है. रूस और यूक्रेन की लड़ाई के कारण ग्लोबल मार्केट में डीजल की मांगे उछाल दर्ज किया गया है.  
अब रूस देगा जरूरतमंद देशों को सस्ती कीमतों पर गेंहू, लेकिन पूरी करनी पड़ेगी यह शर्त

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भारत बिना शर्त दे रहा है जरूरतमंद देशों को सस्ता गेंहू

नई दिल्ली। भारत पिछले 40 दिनों से जरूरतमंद देशों को बिना शर्त ही सस्ता गेंहू उपलब्ध करा रहा है, क्यूंकि इस साल 
गेंहू की कम पैदावार के चलते वैश्विक बाजार में गेंहू का भारी संकट है। रूस ने भी भारत की तरह जरूरतमंद देशों को सस्ता गेंहू देने की योजना बनाई है। लेकिन उसके लिए एक शर्त रखी है कि गेंहू खरीद का भुगतान केवल उसकी अपनी मुद्रा रूबल में ही करना होगा। इसके पीछे पहली वजह ये है कि प्रतिबंध की वजह से रूस डालर को रूबल से एक्सचेंज नहीं कर सकता है। दूसरी वजह है कि रूबल में भुगतान होने की सूरत में उसकी मुद्रा अधिक मजबूत होगी। इस तरह रूस ने वैश्विक बाजार में बड़ा पासा फेंक दिया है। रूस ने यह निर्णय अपने देश का निर्यात बढाने के लिए भी लिया है।

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यूक्रेन के साथ जारी युद्ध के चलते रूस कई तरह के आर्थिक प्रतिबंधों की मार झेल रहा है। अब अपने गेंहू की नई पैदावार को नुकसान से बचाने के लिए रूस ने एक बड़ी योजना बनाई है। इस योजना के तहत उसने ग्रेन एक्‍सपोर्ट टैक्‍स को कम करने का फैसला किया है। इसका सीधा रूस से होने वाले गेहूं निर्यात पर पड़ेगा। रूस की मंशा भी यही है। यह भी बता दें कि रूस विश्‍व में गेहूं का सबसे बड़ा निर्यातक है। कई जरूरतमंद देश रूस से ही अपनी गेहूं की जरूरत को पूरा भी करते हैं। लेकिन इस बार कहानी कुछ और है।

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टैक्स में भी किया है बदलाव

- टैक्स की नई दरें छह जुलाई से लागू हो जाएंगी। रूसी कृषि मंत्रालय के अनुसार इस गर्मी के मौसम में रूस में गेहूं की बंपर पैदावार होने की उम्मीद है। इसके कारण निर्यात के लिए बड़ी मात्रा में गेहूं उपलब्ध रहेगा। रूस ने टैक्स घटाकर 4,600 रूबल (86 डालर) प्रति टन कर दिया है। रूस इसी टैक्स दर पर अपने परंपरागत ग्राहक पश्चिम एशिया और अफ्रीका के देशों को गेहूं की आपूर्ति करेगा।

दुनियाभर में गेहूं की सप्लाई करते हैं रूस और यूक्रेन

- रूस और यूक्रेन दुनियाभर में गेहूं की सप्लाई करते हैं। दोनों देश खाद्यान्न और खाद्य तेल समेत दूसरे खाद्य पदार्थों के बड़े निर्यातक हैं। दोनों देश यूरोप के 'ब्रेड बास्केट' (Breadbasket of Europe) कहे जाते हैं। दुनिया के बाजार में आने वाले गेहूं में 29 और मक्के में 19 फीसदी की हिस्सेदारी यूक्रेन और रूस की है। सूरजमुखी तेल का सबसे बड़ा उत्पादक यूक्रेन है। रूस का नंबर दूसरा है। एसएंडपी ग्लोबल प्लैट्स (S&P Global Platts) के मुताबिक दोनों मिल कर सूरजमुखी तेल के उत्पादन में 60 फीसदी हिस्सेदारी रखते हैं।लेकिन लड़ाई की वजह से कुछ फ्यूचर एक्सचेंजों में तो कमोडिटी के भाव 14 साल के शिखर पर पहुंच गए।